Human Skeleton System - मानव कंकाल तंत्र

 




मानव कंकाल तंत्र

Human Skeleton System - मानव कंकाल तंत्र


हमारे शरीर को निश्चित आकार एवं आकृति प्रदान करने के लिए एक ढांचे की आवश्यकता होती है। इसके अभाव में शरीर न तो चल-फिर सकेगा और न ही कार्य कर सकेगा। यह ढांचा कंकाल तंत्र कहलाता है। कंकाल तंत्र का निर्माण अस्थियाँ, उपास्थियाँ, संधियाँ आदि मिलकर करते हैं। अस्थियों, उपास्थियों से मिलकर बने शरीर के ढाँचे को ही कंकाल तंत्रकहते हैं। 

कंकाल तंत्र के कार्य :-

  • यह शरीर को निश्चित आकृति एवं आधार प्रदान करता है।
  • शरीर के आंतरिक कोमल अंगों की बाह्य आघातों से रक्षा करता है।
  • यह पेशियों की सहायता से सम्पूर्ण शरीर एवं शरीर के अंगों को गति प्रदान करता है।
  • यह शरीर को मजबूती प्रदान करता है।

मानव कंकाल तंत्र के मुख्य भाग :-

मानव कंकाल तंत्र को तीन मुख्य भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं -
(1 )    अक्षीय कंकाल         (2 )    वक्षीय कंकाल        (3)    अनुबन्धित कंकाल

(1) अक्षीय कंकाल- 

इसका आकार प्रश्नवाचक चिह्न (?) की तरह होता है। इसमें प्रमुख रूप से खोपड़ी की अस्थियाँ, दाँतो सहित ऊपरी एवं निचले जबड़े की अस्थियाँ एवं अंगुठी के आकार की 33 कशेरूकाएँ सम्मिलित होती है, जिनसे रीढ़ की हड्डियों का निर्माण होता है।

रीढ़ की हड्डी

गर्दन से लेकर कमर के नीचे तक की अस्थि रीढ़ खम्भ (मेरूदंड) कहलाती है। यह छोटी-छोटी 33 अस्थियों से मिलकर बनती है, जिन्हें कशेरूकाएँ कहते हैं। ये सभी कशेरूकाएँ आपस में जुड़कर कशेरूक दण्ड का निर्माण करती है, जिसे हम रीढ़ की हड्डी भी कहते हैं।

(2 )  वक्षीय कंकाल :- 

यह 12 जोड़ी हड्डियों की एक टोकरीनुमा संरचना होती है, जिन्हें पसलियाँ कहते हैं। इसमें शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग जैसे- हृदय, फेफड़े आदि सुरक्षित रहते हैं।
पसलियाँ

(3 ) अनुबन्धी कंकाल- 

इसमें अंसमेखला, श्रोणी मेखला तथा हाथ-पैर की अस्थियाँ सम्मिलित होती हैं।

(अ) हाथ की अस्थियाँ - 

                     हाथ की अस्थियाँ

हाथ की अस्थियाँ प्रमुख रूप से निम्नलिखित होती है-

(1 ) ह्यूमरस :- 

कोहनी एवं कंधे के बीच की अस्थि ह्यूमरस कहलाती है। ह्यूमरस के लम्बे मध्य भाग को शाफ्ट कहते हैं।

(2) रेडियो अलना - 

कलाई और कोहनी के बीच में दो अस्थियाँ स्थित है। पहली हाथ के बाहर की तरफ एवं दूसरी हाथ के अन्दर की तरफ स्थित है, जिन्हें क्रमशः रेडियो एवं अलना कहते हैं।

(3 ) कलाई की अस्थियाँ - 

रेडियो अलना अस्थि जिस स्थान पर हथेली के पास जुड़ी है, वह स्थान कलाई कहलाता है। कलाई का निर्माण छोटी-छोटी आठ अस्थियों से होता है, जिन्हें मणिबन्धिकाएँ (कार्पल्स) कहते हैं।

(4) हाथ के पंजे, अंगुलियों, अंगूठे की अस्थियाँ - 

हथेली में कुल पाँच अस्थियाँ होती है, जिन्हें करमास्थियाँ (मेटा कार्पल्स) कहते हैं। हमारी अंगुलियों एवं अंगूठे में भी अस्थियाँ होती है जिन्हें क्रमशः अंगुलास्थियाँ एवं अंगूठास्थियाँ कहते हैं। प्रत्येक अंगुली में तीन तथा अंगूठे में दो अस्थियाँ होती है।

(ब) पैर की अस्थियाँ :-

           पैर की अस्थियाँ

(1) फीमर - 

कूल्हे और घुटने के बीच की अस्थि को फीमर कहते हैं। यह शरीर की सबसे लम्बी एवं मजबूत अस्थि है जिसका निचला सिरा नीचे की अस्थियों (टिबिया-फिबुला) एवं ऊपरी सिरा कूल्हे की अस्थि से जुड़ा होता है।

(2) टिबीया फिबुला - 

घुटने से टखने के बीच टिबिया एवं फिबुला नामक दो अस्थियाँ पाई जाती है। टिबिया अन्दर एवं फिबुला बाहर की ओर स्थित होती है।

(3) टखने की अस्थियाँ- 

टखना कुल सात अस्थियों से मिलकर बना होता है, जिन्हें गुल्फास्थियाँ (टार्सल्स) कहते हैं। ये ऐड़ी का निर्माण करती है।

(4 ) तलवे, अंगुलियों, अंगुठे की अस्थियाँ - 

पैर के तलवे में पाँच अस्थियाँ होती है, जिन्हें प्रपदिकाएँ (मेटा टार्सल्स) कहते हैं। पैर की प्रत्येक अंगुली में तीन एवं अंगूठे में दो अस्थियाँ होती है।

विशेष  :-

  • कन्धे की अस्थि अंस मेखला कहलाती है। 
  • कूल्हे की अस्थि को श्रोणी मेखला कहते हैं।
  • अंस मेखला एवं श्रोणी मेखला से क्रमशः हमारे हाथ एवं पैर की अस्थियाँ जुड़ी होती है।
  • ये दोनों मेखलाएँ कंकाल तंत्र का आधार है।

4.     शरीर की प्रमुख संधियाँ :-

    कंकाल तन्त्र की अस्थियाँ आपस में जिनके द्वारा जुड़ती है उन्हें सन्धि या जोड़ कहते है।
    सन्धियाँ दो प्रकार की होती है -
    (1)    चल सन्धियाँ            (2)    अचल सन्धियाँ

(1) चल सन्धियाँ - 

वे सन्धियाँ जो अस्थियों को गति प्रदान करने में सहायक है, उन्हें चल सन्धियाँ कहते हैं जैसे- घुटना, टखना, कोहनी, गर्दन आदि की सन्धियाँ।

(2) अचल सन्धियाँ- 

इस प्रकार की सन्धियाँ गतिशील नहीं होती है। इनका मुख्य कार्य शरीर के कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करना है। जैसे- खोपड़ी एवं वक्ष की सन्धियाँ।

शरीर की प्रमुख चल सन्धियाँ -

हमारे शरीर की प्रमुख चल सन्धियाँ निम्नलिखित होती है -
(i)     कन्दुक-खल्लिका सन्धि - 

इस प्रकार की सन्धि की रचना में एक अस्थि का सिरा गुहानुमा एवं दूसरी अस्थि का सिरा गोल होता है। गुहा को खल्लिका एवं गोल सिरे को कन्दुक (गेंद) कहते हैं। इस विशेष संरचना के कारण इस सन्धि को कन्दुक-खल्लिका सन्धि कहते हैं।
    इस सन्धि पर गोल सिरे वाली अस्थि आसानी से सभी दिशाओं में घूम सकती है। जैसे -
  •   अंस मेखला में हाथ की अस्थि ह्यूमरस।
  •  श्रोणी मेखला में पैर की अस्थि फीमर
(ii) कोर सन्धि - 

अपनी कोहनी और घुटने को घुमाने पर ये पूरे गोल नहीं घूम सकते है, बल्कि ये एक ही दिशा में गति कर सकते हैं। इनकी तुलना आप अपने घर के दरवाजों में लगे कब्जों से भी कर सकते हैं। इस प्रकार की सन्धि में एक अस्थि का गोल सिरा, दूसरी अस्थि के अवतल भाग से जुड़ा होता है। उदाहरण - कोहनी एवं घुटने की संधि।
(iii) धुराग्र सन्धि- 
धुराग्र सन्धि

जब हम अपने सिर को घुमाकर देखते हैं तो अनुभव करते हैं कि  यह दाएँ-बाएँ, ऊपर -नीचे निश्चित दिशा तक ही घूम सकती है। हमारा सिर मेरूदण्ड के ऊपरी सिरे से जिस सन्धि द्वारा जुड़ा होता है, उसे धुराग्र सन्धि कहते हैं। इस संधि के कारण मेरूदण्ड की स्थिर अस्थि पर खोपड़ी का निचला सिरा आसानी से दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे घूम सकता है।

माँसपेशियाँ :

अस्थियों की गति में माँसपेशियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। माँसपेशियाँ संकुचनशील पेशियों से बनी होती है जिनमें सिकुड़ने एवं फैलने की क्षमता होती है। हमारी अस्थियों में गति माँसपेशियों के सिकुडने एवं फैलने से ही होती है।
अगर हम अपने हाथ को अपने शरीर के सामने सीधा फैलाएं तथा  इसे मुट्ठी बंद करके सीधा ताने और मुट्ठी को कंधे के पास ले जाते हैं तो देखते हैं कि कोहनी और कंधे के बीच का भाग फूल जाता है और खींचा रहता है। बाजू के ऊपरी भाग में ऐसा नहीं होता है।
किसी अस्थि को गतिमान करने के लिए दो प्रकार की पेशियाँ मिलकर कार्य करती है। जब एक पेशी सिकुड़ती है तो अस्थि उस दिशा में खिंच जाती है एवं दूसरी पेशी शिथिल अवस्था में आ जाती है। अस्थि को विपरीत दिशा में गति देने के लिए पूर्व में सिकुड़ी हुई पेशियाँं शिथिल एवं शिथिल हुई पेशियाँं सिकुड़ती है। शरीर को गति प्रदान करने के लिए दोनों प्रकार की पेशियाँं संयुक्त रूप से कार्य करती है।


Prince Mr Sajid Ansari